Monday, October 2, 2023
UTTARAKHAND: राजनीति, समाजसेवा और धर्म का संगम अमृता रावत
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कहते हैं एक समय पर दो नांवों पर सवारी करना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है,लेकिन जो असंभव को संभव कर दे उसे महापुरुष कहते हैं,ऐसे ही एक युग पुरुष का नाम है सतपाल महाराज, जो आधायात्म और राजनीति के पथ पर एक साथ न सिर्फ आगे बढ़ रहे हैं बल्कि हर दिन सफलताओं के सौपान भी हासिल कर रहे हैं.सतपाल महाराज जहां अपने करोड़ों भक्तों के लिए सद्गुरू हैं तो लाखों चाहने वालों के लिए बेदाग राजनेता भी हैं.आधायत्म के साथ साथ सियासत को लेकर चलना हर किसी के बस की बात नहीं लेकिन आज के दिन सतपाल महाराज दोनों कामों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं और इसके पीछे जहां उनका असीम तपोबल, आधायत्मकि ऊर्जा और दिन-रात का पुरुषार्थ तो है ही साथ में एक और ताकत उनके साथ है,इस शक्ति का नाम है उनकी धर्म पत्नी अमृता रावत जो न सिर्फ सतपाल महाराज के हर फैसले में उनके साथ चट्टान के साथ खड़ी रहती हैं बल्कि मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी उनको हौसला देती हैं,खास बात ये है कि सतपाल महाराज कि तरह अमृता रावत भी आध्यात्म और समाज सेवा के साथ-साथ एक सफल राजनेता के तौर पर अपनी छाप छोड़ चुकी हैं खासकर उत्तराखण्ड की सियासत में अमृता रावत एक बड़ा नाम हैं,उत्तराखण्ड में दो-दो बार कैबिनेट मंत्री रहते हुए वो अपनी कुशल प्रशासक और नीति नियंता के तौर पर अपने को साबित कर चुकी हैं.उत्तराखण्ड सरकार में ऊर्जा, पर्यटन, बाल विकास और महिला सशक्तिकरण जैसे भारी भरकम विभाग संभाल चुकी अमृता रावत का काम आज भी बोलता है.

विधायक रहते हुए अमृता रावत ने जहां अपनी विधानसभा में सड़कों का जाल बिछाया.वहीं उत्तराखण्ड की ऊर्जा मंत्री रहते उन्होंने पहाड़ों में गांव-गांव बिजली पहुंचान का काम किया.शाम ढलते दूर पहाड़ के किसी गांव में जब आपको बिजली का बल्ब टिमटिमाता हुआ नजर आए तो इसमें बड़ी बात नहीं कि इस गांव में अमृता रावत के समय ही बिजली पहुंची हो.हलांकि अमृता रावत ने अपनी सियासी पारी 2002 में शुरू की थी जब अलग उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उन्होंने रामनगर से विधानसभा चुनाव जीता था और एनडी तिवारी सरकार में ऊर्जा मंत्री बनकर ऊर्जा मंत्रालय संभाला था लेकिन राजनीति में अमृता रावत ने सही मायने में बहुत पहले ही कदम रख दिया था जब वो 1978 में कानपुर के गर्ल्स डिग्री कॉलेज में संयुक्त सचिव के पद पर भारी मतों से विजयी हुईं थीं.

उतराखण्ड के पौड़ी जनपद में एक ब्लाक पड़ता हैं एकेश्वर और इसी ब्लॉक के रिगवाड़ी गांव में कुंवर सिंह रावत के घर अमृता जी का जन्म हुआ था अमृता जी के पिता कुंवर सिंह रावत कानपुर में वैज्ञानिक थे इसलिए उनकी पढ़ाई लिखाई कानपुर में हुई और यही कॉलेज समय में उनका रुझान छात्र राजनीति की तरफ हुआ था.

सतपाल महाराज से विवाह के बाद उन्होने ने खुद को समाजसेवा में समर्पित कर दिया.सत्संग में वो जहां सतपाल महाराज के साथ मंचों पर नजर आतीं वहीं समाजसेवा और गरीबों की सेवा में जुटी रहती.1989 में चमोली जनपद के पिंडर घाटी में आयी भयानक बाढ़ और भू-स्खलन को न तो आज भी वहीं के लोग भूल पाये हैं और न ही देवदूत के रूप में मदद के लिए पहुंचीं अमृता रावत और उनकी टीम को 1989 में पिंडर घाटी के गडीनी गांव में भू-स्खलन से जो तबाही मची थी उसके निशान आज भी मिल जायेंगे और साथ में अमृता रावत को याद करने वाले भी.

अमृता रावत ने समाज सेवा का सिलसिला शुरू किया था वो आज भी निरंतर उसी तरह जारी है.बात चाहे 1991 में गढ़वाल में आए भूकंप के बाद बेघर हुए लोगों को दवाईयां औऱ खाने का समाज पहुंचाना हो या फिर रुद्रप्रयाग के फाटा में आयी बाढ़ में जनता की मदद करनी हो अमृता रावत हर समय लोगों के साथ खड़ी नजर आयीं.2013 में केदारनाथ में आयी भीषण तबाही में भी उन्होंने पीड़ितों के लिए हर तरह की मदद पहुंचाई थी.कोरोना काल में भी अमृता रावत और उनका पूरा परिवार गरीबों और असहायों की मदद में जुटा रहा.उत्तराखण्ड बनने के बाद आज भले ही हर दूसरा आदमी खुद को राज्य आंदोलनकारी बता रहा है लेकिन सतपाल महाराज और अमृता रावत ने जिस तरह बगैर किसी तरह का श्रेय लेकर आंदोलन की मशाल को जलाए रखा था काबिले तारीफ है.जब सतपाल महाराज ने उत्तराखण्ड राज्य बनाने के लिए गोपेश्वर से नारसन तक पैदल यात्रा निकाली थी तब अमृता रावत भी एक आंदोलनकारी की तरह उस यात्रा में शामिल हुईं थी.

रामपुर तिराहे पर शहीदों की याद में जो स्मारक बना है वो सतपाल महाराज और अमृता रावत की कोशिशों का नतीजा है.मुजफ्फरकांड के बाद उन्होने जिस तरह से उत्तराखण्ड आंदोलन और आंदोलनकारियों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाए थे उसकी यादें आज भी लोगों के जहन में मौजूद हैं..हलांकि ये अलग बात है सतपाल महाराज और अमृता रावत ने खुद कभी इसका श्रेय लिया और न ही कभी इसको अपनी सियासत के लिए भुनाया.

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